जैसे ही उठी आज मैं सुबह सवेरे,
तो चेहरे को छूती खामोश हवा,
और टिम-टिमाते तारो ने,
यूं ही कह दिया मुस्कुरा कर,
कि है हमारी इतनी विशाल ये दुनिया,
इतनी खूबसूरत अंतरिक्ष की रोशनिया,
यहाँ है इतना विशाल जीवन,
है बस अथक निरंतर चलायमान सब कुछ,

पर तभी अचानक,

किसी के चल रहे मेरे ही सामने अथक प्रयास,
या किसी के आजीवन चल रहे अभ्यास से,
फिर अचानक ही चल उठी धरती, उठती सी जिंदगी,
ऐंठती सी कोपले, उड़ती सी कोयले, सुलगते से कोयले,
और उन पर फिर कहीं से चौकते मनुष्य, या,
कहु जीवन को दूसरों को समर्पित, करते ईश्वर,
बस पुर्ण जीवन काल मे दुसरो के लिये जीते वृक्ष,

और इस पर देखा, मैने,
तारो को चिढ़ते से दुर जाते,
शायद उन्होंने नहीं देखा,
ये चलायमान, निरंतर जीवंत,
और खूबसूरत ओढ़नी सा सुबह सवेरा ।